सिंधु जल संधि रद्द होने से घुटनों पर आ सकता है पाकिस्तान, 68% आबादी की आजीविका इसी पर निर्भर
नई दिल्ली :- पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ बड़ा कूटनीतिक कदम उठाते हुए सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को रद्द कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) की बैठक में यह निर्णय लिया गया। संधि के स्थगन के बाद, पाकिस्तानी राजनयिकों को देश छोड़ने के लिए 7 दिन की समयसीमा दी गई है, और पाक नागरिकों के वीजा भी तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिए गए हैं।
क्या है सिंधु जल संधि?
सिंधु जल संधि वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित एक ऐतिहासिक समझौता है, जो विश्व बैंक की मध्यस्थता में नौ वर्षों की बातचीत के बाद तैयार हुआ था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। संधि के अनुसार, भारत को पूर्वी नदियों – रावी, व्यास और सतलुज – का पूर्ण नियंत्रण दिया गया, जबकि पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब – का प्रमुख हिस्सा पाकिस्तान को आवंटित किया गया। यह विभाजन भारत के लिए सीमित उपयोग की अनुमति देता है, लेकिन पाकिस्तान को लगभग 80% पानी की हिस्सेदारी मिलती रही है।
पृष्ठभूमि: विवाद की जड़ में नदियां
1947 के विभाजन के बाद सिंधु नदी प्रणाली, जो तिब्बत से निकलकर भारत और पाकिस्तान के कई हिस्सों से होकर गुजरती है, दोनों देशों के बीच तनाव का केंद्र बन गई। 1948 में भारत ने अस्थायी रूप से पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति रोक दी थी, जिसके बाद पाकिस्तान ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाया और विश्व बैंक की मध्यस्थता से समाधान की दिशा में पहल हुई।
पाकिस्तान पर क्या होगा असर?
भारत द्वारा संधि को स्थगित करने का सबसे बड़ा प्रभाव पाकिस्तान की जल और कृषि व्यवस्था पर पड़ेगा। सिंधु और इसकी सहायक नदियां पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों के लिए जीवनरेखा मानी जाती हैं। इन नदियों से प्राप्त जल:
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पाकिस्तान की कृषि जरूरतों का प्रमुख स्रोत है
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68% ग्रामीण आबादी की आजीविका इसी पर निर्भर करती है
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देश की 23% जीडीपी में कृषि का योगदान है
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हर वर्ष करीब 154.3 मिलियन एकड़ फीट (MAF) पानी की आपूर्ति होती है
यदि जल आपूर्ति में कटौती होती है, तो इसका सीधा असर फसल उत्पादन, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।
पानी के मोर्चे पर पाकिस्तान पहले से ही संकट में
पाकिस्तान में पहले से ही जल प्रबंधन को लेकर गंभीर समस्याएं हैं:
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भूजल स्तर में गिरावट
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खेती की जमीन में लवणता बढ़ना
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कम जल भंडारण क्षमता – मंगला और तरबेला जैसे प्रमुख बांधों में कुल संग्रहण केवल 14.4 MAF, जो संधि के अंतर्गत मिलने वाले कुल पानी का सिर्फ 10% है
भारत के इस निर्णय से पाकिस्तान की गारंटीकृत जल आपूर्ति पर प्रभाव पड़ेगा और उसके पास विकल्प सीमित रह जाएंगे।
भारत का दृष्टिकोण: संधि की समीक्षा समय की मांग
भारत की ओर से यह कदम आतंकी हमलों और सीमा पार दुश्मनी के चलते उठाया गया है। भारत लंबे समय से यह मांग करता रहा है कि जब पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं करता, तो ऐसे में सहयोग की किसी भी व्यवस्था पर पुनर्विचार होना चाहिए।